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पूछने लगा-महाराज! मुझे कोई ऐसी युक्ति बताइये, जिससे मैं अजेय हो जाऊं और भीम या अर्जुन, जिनका . मुझे विशेष भय है, मेरा कुछ न बिगाड़ सकें । युधिष्ठिर ने उत्तर दिया-राजन् ! यह सिद्धि तो तुम्हारे घर में ही है, कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है । माता गांधारी बड़ी सती है । यदि वे एक दृष्टि से तुम्हारे खुले शरीर की ओर देख लें तो तुम्हारा सारा शरीर वज्र के समान कठोर हो जाय । किन्तु एक बात है, वह यह कि शरीर के जिस भाग पर उनकी दृष्टि न पड़ेगी, वह कच्चा रह जायेगा।
युधिष्ठिर की यह बात सुनकर दुर्योधन अत्यन्त प्रसन्न हआ और सोचने लगा-अब क्या है ? अभी जाकर माता गांधारी के सामने से नग्न होकर निकल जाऊ । बस, फिर तो अर्जुन और भीम मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे ।
दुर्योधन यह सोचता हुआ अपने घर की ओर जा रहा था कि मार्ग में उसे श्रीकृष्ण मिले । उन्होंने दुर्योधन के हृदय की बात जान कर कहा-'दुर्योधन ! यह युक्ति तो धर्मराज युधिष्ठिर ने अच्छी बतलाई और इससे तुम्हारा शरीर भी वज्र बन जायेगा, किन्तु बिलकुल नग्न होकर, तुम्हें अपनी माता के पास जाना उचित नहीं है । लज्जा की रक्षा के लिये, कम से कम एक कमल-कोपीन तो अवश्य लगा लेना।'
पहले तो इसके लिए दुर्योधन कुछ आनाकानी करता रहा, किन्तु श्रीकृष्ण के नीति बतलाने पर उसने यह बात स्वीकार कर ली। वह अपनी माता के पास गया और उससे यह सारी कथा कही । गान्धारी यह सुन कर चौंकी । उसे यह नहीं मालूम था कि मेरे में ऐसी शक्ति मौजूद है । किन्तु