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समान कठिन मानते है । उनका विश्वास है कि सत्य व्यवहार करने वाला मनुष्य संसार में जीवित नहीं रह सकता। दूसरे ऐसे भी मनुष्य हो चुके हैं और हैं, जो असत्य व्यवहार करने की अपेक्षा मृत्यु को श्रेष्ठ मानते हैं । सत्य-व्यवहार उनके लिये फलों की सेज है । फिर उस मार्ग में उन्हें, चाहे कितने ही कष्ट क्यों न हों किन्तु वे उनकी परवाह किये बिना ही प्रसन्नतापूर्वक अपने मार्ग पर चलते रहते हैं। ____ जो मनुष्य सत्यमार्ग का पथिक है, उस पर शत्रु भी विश्वास करता है और यह बात घ्र व सत्य है कि वह शत्रु से भी विश्वासघात नहीं करता । इसके लिये महाभारत में वणित एक कथा का उदाहरण दिया जाता है ।
जिस समय महाभारत-युद्ध में दुर्योधन की प्रायः सब सेना औ भाई निःशेष हो गये, सौ भाइयों में से एक दुर्योधन ही नीवित बचा, उस समय दुर्योधन ने सोचा कि मैं अकेला क्या कर सकता हूँ ? पांडवों के पास इस समय भी पर्याप्त शक्ति है और मैं अपने भाइयों में से अकेला हूँ । यह सोच कर वह प्राण बचाने के लिये एक तालाब की जलराशि में जा छिपा । कई दिन तक इसी प्रकार छिपे रहने के पश्चात् उसने सोचा कि मैं क्षत्रिय हूँ, उद्योग करना मेरा परम कर्त्तव्य है । अतः कोई ऐसा उपाय सोचना चाहिए कि जिससे मेरी मृत्यू भी न हो और मैं पूरी शक्ति के साथ अकेला ही पांडवों से युद्ध कर सकू । सोचते-सोचते उसके विचार में यह बात आई–'युधिष्ठिर सरल हृदय हैं और सदैव सत्य भाषण करते हैं, अतः उन्हीं से कोई ऐसी युक्ति पूछनी चाहिए, जिससे मैं अजेय हो जाऊ । यह सोचकर दुर्योधन जल से बाहर निकला और युधिष्ठर के पास जाकर