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________________ (३०) जो मनुष्य अफीम खाना शुरू करता है वह सोचता है कि मैं इसे वश में रखूगा, किन्तु परिणाम बिल्कुल उल्टा होने लगता है । थोड़े ही दिनों में वह अफीम अपने भक्त पर ऐसा कब्जा जमा लेता है कि जब तक उसे अफीम नहीं मिल जाता, वह चलने फिरने से लाचार हो जाता है और बड़े दुःख का अनुभव करता है । ठीक इसी प्रकार असत्य का सेवन करने वाले मनुष्य की दशा होती है । जब वह असत्य का सेवन प्रारम्भ करता है, तब सोचता है कि मैं इस पर कब्जा रखंगा, किन्तु कुछ ही दिनों में वह असत्य उसके जीवन का मूलमन्त्र-सा बन जाता है । असत्य के बिना उसको व्यवहार चलाना कठिन दिखाई देने लगता है और शनैः शनै: वह पतन की ओर जाता हुआ असत्य के ऐसे भारी खड्डे में जा गिरता है, जहां से बिना किसी अच्छे मुनि-महात्मा या किसी अन्य ,सत्यमूर्ति मनुष्य की सहायता के उसका उद्धार होना भी कठिन हो जाता है । मनुष्य को जब तक अनुभव नहीं हो जाता, तब तक सत्य का महत्त्व उसकी समझ में नहीं आता । जब उसके सिर पर कोई ऐसी आपत्ति आ पड़ती है, जो असत्य का आश्रय लेने से उत्पन्न हुई हो, तो तत्काल ही वह समझ जाता है कि सत्य का क्या महत्त्व है और उसी समय से वह असत्य का परित्याग कर देता है। सत्यमार्ग पर चलना, तलवार की धार पर चलने के समान कठिन भी है और फलों के बिछौने पर सोने के समान सरल भी । इसमें प्रकृति की भिन्नता का अन्तर है । ऐसे मनुष्य भी हैं, जो अकारण ही असत्य बोलते रहते हैं और सत्य-व्यवहार को तलवार की धार पर चलने के
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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