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________________ ( २७ ) हैं, उसी प्रकार मनुष्य के अन्दर भी एक ऐसा पदार्थ है, जो सदा सत्य - पालन का आदेश देता है । उस वस्तु का नाम है 'आत्मा' | किसी झूठे कार्य का आत्मा कभी समर्थन नहीं करता। यदि मनुष्य अपने हृदय में बुरे विचारों और दुष्कर्मों की आंधी लाकर, आत्मा को चारों ओर से धलिआच्छादित न कर दे, तो आत्मा उसे सर्वदा सत्य मार्ग ही दिखलायेगा । इतना सब कुछ कहते हुए जब कोई भी मनुष्य, क्रोधादि दुर्गुणों को हृदय से निकाल कर शांत भाव से विचार करता है, तो उसे वही दिव्य प्रकाश किसी अंश में दिखाई देता है, जो सत्यपालन करने वाले को दिखाई दिया करता है । अर्थात् आत्मा उसे ऐसा ही मार्ग दिखाता है, जो उसके लिए कल्याणकर हो । जब कोई मनुष्य किसी ऐसे कार्य को करना चाहता है, जो सत्य के विरुद्ध हो, तो उसकी आत्मा भीतर ही भीतर संकेत करती है कि यह काय बुरा है । इसको करना तुम्हारे लिये उचित और कल्याणकर नहीं है । यद्यपि आत्मा की यह पुकार मानव के पाप पुद्गलों के पुञ्ज से आच्छादित मन तक पूरी नहीं पहुंचती, परन्तु कैसा भी घोर पापी मनुष्य क्यों न हो, इस मधुर सन्देश का आभा उसे अवश्य मिल जाता है । जो सत्य, आत्मा - रूप से मनुष्य के हृदय में स्थित है, वही सत्य सारे संसार में भिन्न २ रूपों में दिखाई देता है । प्रत्येक पदार्थ में यह किसी न किसी रूप में अवश्य मौजूद है । यदि यह न हो, तो संसार की स्थिति ही एक विचित्र प्रकार की हो जाय । सत्य की अनुपस्थिति में मनुष्य ही मनुष्य के प्राणों का ग्राहक बन सकता है । जिस मनुष्य के हृदय से, सत्य की शक्ति निकल जाती
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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