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________________ ( २६ ) जो मनुष्य, सत्य का आचरण नहीं करता, वह संसार में कभी सुखी नहीं रह सकता है और न उसका कोई आदर ही करता है । जब इस लोक के लिए यह बात है, तब परलोक के लिए भी यही बात हो तो इसमें सन्देह ही क्या है ? " संसार के लिए भी, सत्य का व्यवहार अत्यावश्यक है । यदि सत्य व्यवहार निःशेष हो जाय, तो सारे कारबार उसी दिन बन्द कर देने पड़े क्योंकि असत्याचरण जब प्रत्येक व्यक्ति का ध्येय हो जायेगा, तो कोई एक दूसरे पर किंचित् भी विश्वास कैसे कर सकता है ? इन्हीं बातों को दृष्टि में रख कर किसी ने कहा है सत्येन धार्यते पृथ्वी, सत्येन तपते रविः । सत्येन वाति वायुश्च सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥ , 'सत्य ने ही पृथ्वी को धारण कर रखा है, सत्य से ही सूर्य तपता है, सत्य से ही हवा बहती है और सब कुछ सत्य से ही स्थिर है ।' प्रकृति ने मनुष्य को ही सत्याचरण नहीं सिखाया है, बल्कि वह स्वयं भी सत्य का अनुसरण करती है अर्थात् समयानुसार र ऋतुओं का परिवर्तन और ग्रह उपग्रहों का ठीक ठीक अपने कक्ष पर चलना भी सत्य की पुष्टि करता है । यदि गर्मी की ऋतु के स्थान पर वर्षा ऋतु और वर्षा -: - ऋतु के स्थान पर हेमन्त ऋतु श्रादि उलटफेर हो जाया करे, तो कैसी भारी गड़बड़ी हो जाय, यह बात सब जानते हैं । जिस प्रकार प्रकृति के नियम, सत्यं का पालन करते
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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