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________________ सत्य से लाभ और असत्य से हानि प्रियं सत्यं वाक्यं, हरति हृदयं कस्य न सखे । गिरं सत्यां लोकः प्रतिपदमिमामर्थयति च ॥ सुराः सत्याद्वाक्यादति मुदिताः कामिकफलं । अतः सत्याद्वाक्याद् व्रतमभिमतं नास्ति भुवने ॥ प्रिय सत्य वाक्य किसके हृदय को हरण नहीं करते अर्थात् सबका का हृदय हरण कर लेते हैं । लोक, पद पद में सत्य की याचना करते हैं । देवता सत्य से प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देते हैं । इसलिए संसार में, सत्य से बढ़ कर दूसरा कोई व्रत नहीं है । - सत्य असत्य के विषय में ऊपर संक्षेप में बतलाया जा चुका है । अब यह देखना है कि सत्य को धारण करने से क्या लाभ है और झूठ को न तजने से क्या हानि है ? । सत्य का पालना तीन प्रकार से होता है । मन से, वचन से और काया से । जिस विचार में, संसार के किसी प्राणी को कष्ट देने की कल्पना न की गई हो, जिसके प्रकट कर देने पर किसी प्रकार की कुत्सित भावना का परिचय न मिले और वस्तुस्थिति का ज्ञान प्राप्त करके निष्पक्ष भाव से प्राणीमात्र को
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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