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________________ ( २३ ) अनूचित होने के कारण इसको 'असमय २५ कहते हैं । वस्तु के न होने पर भी होना बतलाता है, इसलिये इसका नाम 'अमत्य सन्धत्व' २६ है । यह पुण्य और सत्य का शत्रु है इस कारण इसका नाम 'विपक्ष' २७ है । इससे बुद्धि बिगड़ जाती है, इसलिए इसका नाम 'अपधीक' २८ है । माया के कारण अशुद्ध होने से 'ऊपद्धि शुद्ध' २६ नाम है। वस्तु वा सत्ता को ढंक देता है, इसलिये इसे 'अवलोप' ३० कहते हैं । अलीक वचन के ये तीस सार्थक नाम हैं। इस प्रकार इसके और भी अनेक नाम होते हैं।' झूठ का यह थोड़ा सा स्वरूप बताया है । इसको अपनाने वाला, सदा दुःख की ओर ही अग्रसर होता है ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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