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मुझे यह रखना नहीं कल्पता, इसलिए दूसरे के पास रख दूँ और ऐसा सोच कर मर्यादा से बाहर की वस्तु दूसरे के पास रख दे, यह हिरण्य सुवर्ण परिमाणातिक्रम प्रतिचार है ।
तीसरा प्रतिचार, धनधान्यादि परिमाणातिक्रम है । धन और धान्य के अन्तर्गत बताई गई वस्तुनों के विषय में की गई मर्यादा का आंशिक उल्लंघन, धनधान्य परिमाणातिक्रम अतिचार है । जैसे, किसी ने अनाज घी गुड़ या रुपये पैसे के विषय में कोई मर्यादा की । मर्यादाकाल में उसे मर्यादा के बाहर की कोई वस्तु मिली । उस समय यह सोचे कि यदि मैं इस वस्तु को अभी अपने अधिकार में रखूंगा तो मेरा व्रत भंग हो जायेगा; इसलिए मर्यादाकाल के वास्ते यह वस्तु दूसरे के पास रख दूं अथवा मेरे पास जो वस्तुएं हैं, उनके समाप्त होने या कम होने तक यह वस्तु दूसरे के पास रख दूं । फिर जब मर्यादाकाल समाप्त हो जायेगा या मर्यादा में रखी हुई वस्तु में न्यूनता आयेगी, तब इस वस्तु को लेकर अपने अधिकार में कर लूंगा । इस प्रकार व्रत की अपेक्षा रखते हुए भी ऐसे कार्य करना, जिससे व्रत में दूषण लगता है, धनधान्य परिमाणातिक्रम अतिचार है ।
चौथा द्विपद-चतुष्पद परिमाणातिक्रम अतिचार है । जितने द्विपद या चतुष्पद रखने का आगार है, उतने से अधिक मिलने पर व्रत टूटने के भय से अधिक मिले हुए को अपने पास न रखे, किन्तु दूसरे के पास रख दे और सोचे कि मर्यादाकाल समाप्त होने पर या मर्यादित द्विपद चौपद में कमी होने पर मैं इसे दूसरे से ले लूंगा तो यह द्विपद चतुष्पद परिमारणातिक्रम अतिचार है ।