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________________ ( ३४४ ) नहीं है और जिसके करने से व्रत कुछ अंश में भंग हो जाता है, तो यह अतिचार है । क्षेत्र वास्तु परिमाणातिक्रम अतिचार का अर्थ, खेतादि खुली भूमि और गृहादि आच्छादित भूमि के विषय में की गई मर्यादा का पूर्णत: नहीं किन्तु प्रांशिक उल्लंघन करना है । जैसे किसी व्यक्ति ने चार से अधिक खेत न रखने की मर्यादा की । मर्यादाकाल में उसे और खेत मिले । व्रत न टूटे इस विचार से उसने उन फिर मिले हुए खेतों को पहले के चार खेतों में ही मिला लिया । बीच की मेड़ (पाल) तोड़ दी और फिर मिले हुए खेतों को पहले के खेतों में मिला कर संख्या नहीं बढ़ने दी, तो यह अतिचार है क्योंकि मर्यादा करने के समय उसने और खेतों को मिला कर प्रस्तुत खेतों को बढ़ाने का आगार महीं रखा था । इसी प्रकार गृह के विषय में भी विचार रखना । मर्यादा में जिस घर को रखा है, उस घर को लंबाई चौड़ाई अथवा मूल्य में बढ़ाना भी अतिचार है । हिरण्य सुवर्ण परिमाणातिक्रम अतिचार का अर्थ, चांदी सोना या चांदी सोने की चीजों के विषय में की गई मर्यादा का प्रांशिक उल्लंघन करना है । कोई व्रत की उपेक्षा तो नहीं करता है, व्रत की तो रक्षा ही करना चाहता है, फिर भी असावधानी से या समझ की कमी के कारण ऐसे कार्य करता है, जिससे व्रत का आंशिक उल्लंघन होता है और व्रत में दूषरण लगता है, तो यह हिरण्य सुवर्ण परिमाणातिक्रम पतिचार है । जैसे, मर्यादा करने के पश्चात् सोना चांदी या चांदी की कोई वस्तु मिली । उस समय यह सोचे कि
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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