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अतिचार
इच्छा-परिमाण-व्रत के पांच अतिचार बताये गये हैं। ये पांचों अतिचार जानने योग्य हैं, आचरण योग्य नहीं हैं। व्रत की मर्यादा चार प्रकार से टूटती है, अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार से । अतिक्रम, व्यतिक्रम तथा अतिचार में व्रत का आंशिक भंग होता है और अनाचार में व्रत पूरी तरह टूट जाता है । अतिचार, व्रत का बड़ा दूषण है, इसलिए खास तौर से इससे बचना चाहिए। ऐसा करने पर ही व्रत दूषण-रहित रह सकता है।
इच्छा परिमाण व्रत के पांच. अतिचार ये हैं-क्षेत्र वास्तु परिमाणातिक्रम, हिरण्य सुवर्ण परिमाणातिक्रम, धनधान्य परिमाणातिक्रम, द्विपद चतुष्पद परिमाणातिक्रम और कुप्य परिमाणातिक्रम ।
खेतादि भूमि और गृहादि के विषय में की गई मर्यादा का आंशिक उल्लंघन करना क्षेत्रवास्तु परिमाणातिक्रम अतिचार है । यदि मर्यादा को पूर्णतया विचारपूर्वक तोड़ दिया जावे, तब तो वह अनाचार ही है, उससे व्रत बिलकुल ही टूटता है, लेकिन व्रत की अपेक्षा रखते हुए भी भूल या असावधानी से ऐसा कार्य हो जावे जो व्रत की मर्यादा में