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बात, कार्य या विचार से दूसरे को दुःख पहुंचे, वह सत्य नहीं कहलाता । उसकी गणना सभी ने झूठ में ही की है ।
दवैकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन की टीका में मृषावाद (झूठ ) चार प्रकार का बतलाया गया है । सद्भावप्रतिषेध, असद्भावोद्भावन, श्रर्थान्तर और गर्दा । सद्भाव प्रतिषेध उस झूठ को कहते हैं, जिसके द्वारा किसी के हृदय में स्थित अच्छे भावों को बुरा बताया जाय अथवा विद्यमान वस्तु को अविद्यमान कहा जाय ।
जो वस्तु नहीं है, उसका विधान करना असद्भूतोद्भावन असत्य कहलाता है । जैसे— जीव को न मारने में धर्म और मरते हुए जीव को बचाने में किसी की किसी प्रकार सहायता करने, की सेवा करने और विनय करने को पाप कुपात्र समझने के भाव भरना आदि ।
पाप बताना, या माता-पिता, पति बताना तथा उन्हें
'अर्थान्तर' उस झूठ को कहते हैं, जिससे किसी बात, पुस्तक, वस्तु आदि के वास्तविक अर्थ या गुण श्रादि की जगह अवास्तविक गुण, अर्थ आदि बताये जायं । जैसे गाय को घोड़ा बताना, अमृत को विष या विष को अमृत बताना, शास्त्र के सही अर्थ को छोड़ कर दूसरा ही अर्थ करना । उस कार्य, बात या विचार को गर्हा झूठ कहते हैं, जिससे किसी की निन्दा हो, या किसी के हृदय को दुःख पहुंचे । शास्त्र में गुरंगानुसार, मिथ्या भाषण के तीस नाम बतलाये हैं । जैसे ‘अलीक' (झूठ ) १. 'शठ' २. अनार्य लोग कहते हैं, इससे 'अनार्य' ३, माया से युक्त तथा मिथ्या रूप होने के कारण इसका नाम 'माया मृषा' ४ भी है । जो वस्तु नहीं है, उसे यह बतलाता है, इसलिये इसका नाम