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________________ ( ३३५ ) गेंद को लेकर नहीं बैठ जाता और यदि कोई ऐसा करे तो उसके साथी गरण उसे दंड देने तथा उससे गेंद छीनने का प्रयत्न करते हैं । गेंद के इस खेल से धन-धान्यादि सम्पत्ति के विषय में भी यह शिक्षा मिलती है कि इन सब को अपना ही न मान बैठो, किन्तु जैसे गेंद से अनेकों को खेलने का लाभ दिया जाता है, उसी तरह सम्पत्ति का लाभ भी सब को दो । फिर चाहे वह सम्पत्ति तुम्हारे ही अधिकार की क्यों न हो, लेकिन उसे पकड़ कर मत बैठ जाओ । यदि तुम सम्पत्ति को अपनी ही मान कर दबा बैठोगे तो लोग तुम से वह सम्पत्ति छीनने का प्रयत्न करेंगे तथा तुम्हारे पास न रहने देंगे और यदि गेंद की तरह सम्पत्ति का भी आदान प्रदान करते रहोगे तो जिस प्रकार फेंका हुआ गेंद लौट कर फेंकने वाले के ही पास आता है, उसी तरह दूसरे को देते रहने पर - यानी त्याग करने ही पर - सम्पत्ति भी लौट लौट कर त्यागने वाले के ही पास आयेगी । सम्पत्ति के लिए झगड़ा भी तभी होता है, जब कोई उसे अपनी मान कर पकड़ बैठता है । जहां किसी वस्तु को अपना नहीं माना जाता, वहां किसी प्रकार का झगड़ा भी नहीं होता । प्रति जिस तरह मर्यादा में रखी हुई प्राप्त वस्तु के कृपरणता अथवा ममत्व न रखना उसी तरह मर्यादा में रखी हुई अप्राप्त वस्तु की कामना भी न करना; किन्तु निष्काम रहना । कामना से वस्तु प्राप्त भी नहीं होती और यदि प्राप्त हुई भी तो उससे आध्यात्मिक तथा मानसिक हानि होती है । वस्तु की कमी वहीं है, जहां कामना है जहां कामना नहीं है, वहां वस्तु की भी कमी नहीं है । कामना न होने पर वस्तु छाया की तरह पीछे दौड़ती है,
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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