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( ३३६ ) और कामना होने पर दूर भागती है । जैसे कोई आदमी छाया को पकड़ने के लिए छाया की ओर दौड़े तो छाया. आगे की ओर भागेगी, लेकिन यदि वह छाया को पकड़ने की इच्छा न करे, छाया की ओर पीठ दे दे तो वह छाया उस आदमी के पीछे दौड़ेगी । इसी प्रकार वस्तु की चाह करके उसके प्रति उपेक्षा बुद्धि रखे तो वस्तु दौड़ कर पास आयेगी और यदि वस्तु की चाह करके उसके पीछे दौड़े तो वस्तु दूर भागेगी । इसलिए मर्यादा में होने पर भी अप्राप्त वस्तु को कामना न करना, किन्तु निष्काम और मर्यादा पर स्थिर रहना । मर्यादा पर स्थिर रहने से सम्पत्ति स्वयं ही दौड़ कर पायेगी । तुलसी-कृत रामायण में कहा हैजिमि सरिता सागर मंह जाही, यद्यपि तिन्हैं कामना नाहीं। तिमि धनसम्पति बिनहिं बुलाये,धर्मशील पंह जाहिं सुभाये।।
____ अर्थात् - जिस प्रकार समुद्र को जल की कामना न होने पर भी सब नदियां समुद्र में ही जाती हैं, उसी प्रकार धन सम्पत्ति भी धर्मशील व्यक्ति के पास बिना बुलाये ही स्वभावतः जाती है ।
तात्पर्य यह कि मर्यादा में रही हई परन्तु अप्राप्त वस्तु की कामना न करना, न उसके लिए धर्म की सीमा का उल्लंघन ही करना चाहिए ।
यह व्रत स्वीकार करने वाला उन कार्यों को कभी नहीं करता, जिनका शास्त्र में निषेध किया गया है। शास्त्र' में श्रावक के लिए वयं पन्द्रह कर्मादानों में जो कार्य बताये गये हैं, इच्छा परिमाण व्रत स्वीकार करने वाले उन कामों