SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३१५ ) ममत्व तथा चिन्ता भय रहित रहे । साथ ही भगवान् की प्राज्ञा से जो वस्त्र - पात्र एवं उपधि रखता है, जिस सम्प्रदाय ( गच्छ ) में रह कर धर्म-साधन करता है और जिस शरीर में आत्मा बस रहा है, उसके लिए भी यह भावना करता रहे कि मैं इन सब से भी ममत्व न रखूंगा तथा वह दिन कब होगा, जब मैं जीवन के लिए आवश्यक माना जाने वाला अन्न पानी भी त्याग दूंगा और जीवन-मुक्त हो जाऊंगा । जो इस प्रकार रहता है, वही अपरिग्रह - व्रत का पालन करने वाला है । इस व्रत को जिसने स्वीकार किया है, उसके हृदय में संयोग-वियोग का सुख - दुःख तो होना ही न चाहिए, न स्वर्गादि के सुखों की अभिलाषा ही होनी चाहिए । - *
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy