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ममत्व तथा चिन्ता भय रहित रहे । साथ ही भगवान् की प्राज्ञा से जो वस्त्र - पात्र एवं उपधि रखता है, जिस सम्प्रदाय ( गच्छ ) में रह कर धर्म-साधन करता है और जिस शरीर में आत्मा बस रहा है, उसके लिए भी यह भावना करता रहे कि मैं इन सब से भी ममत्व न रखूंगा तथा वह दिन कब होगा, जब मैं जीवन के लिए आवश्यक माना जाने वाला अन्न पानी भी त्याग दूंगा और जीवन-मुक्त हो जाऊंगा । जो इस प्रकार रहता है, वही अपरिग्रह - व्रत का पालन करने वाला है । इस व्रत को जिसने स्वीकार किया है, उसके हृदय में संयोग-वियोग का सुख - दुःख तो होना ही न चाहिए, न स्वर्गादि के सुखों की अभिलाषा ही होनी चाहिए ।
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