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________________ (३०८) 'परिग्रह नहीं है ' ? और जब परिग्रह है, तब निर्ग्रन्थ कैसे हुए और मोक्ष कैसे जा सकते हैं ? जो निर्ग्रन्थ हैं, उन्हें तो दिगम्बर रहना चाहिये और अपने पास वस्त्र या धर्मोपकरण आदि कुछ भी न रखने चाहिएं । इन प्रश्नों का समाधान करने के लिए पहले कही हुई इस बात को दुहरा देना आवश्यक है कि पदार्थ का नाम परिग्रह नहीं, किन्तु उन पर ममत्व का नाम परिग्रह है । साधु लोग जो वस्त्र, पात्र और धर्मोपकरण रखते हैं, उन्हें वे परिग्रह - व्रत बताने वाले भगवान् तीर्थंकर की प्रज्ञा से ही रखते हैं, उनकी आज्ञा के विरुद्ध नहीं रखते । भगवान् तीर्थंकर ने साधक के लिए जिन वस्तुनों का त्यागना कठिन और रखना आवश्यक समझा, उन वस्तुओंों के रखने का विधान कर दिया और मर्यादा बना दी कि साधु इतने वस्त्र, इतने पात्र और अमुक-अमुक धर्मोपकरण ही रख सकता है, जो इससे अधिक लम्बे-चौड़े या भारी न हों और मर्या - दानुसार रखे गये वस्त्र, पात्र आदि में भी ममत्वभाव न हो । इस प्रकार भगवान् ने जिनके रखने का विधान किया है वे ही वस्त्र, पात्रादि रखे जा सकते हैं, दूसरे या अधिक नहीं रखे जा सकते । यदि कोई उस मर्यादा से अधिक रखता है अथवा मर्यादानुसार रख कर करता है, तो वह अवश्य ही परिग्रही माना जायेगा | भगवान् त्रिकालदर्शी थे । वे जानते थे कि यदि मैं इस प्रकार का विधान न करूंगा और मर्यादा न बांध दूंगा तो आगे जाकर बहुत अनर्थ होगा तथा अपरिग्रही रहने के नाम पर वह कार्यवाही होगी, जैसी कार्यवाही परिग्रही ही कर सकता है । इसलिये भगवान् ने कुछ वस्त्र, पात्र रखना सामान्यतः भी उनसे ममत्व 1
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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