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________________ (३०५) नहीं हो सकता। जिसमें लालसा है-उसके पास कोई स्थूल पदार्थ न हो तब भी वह परिग्रही ही है। हृदय में पदार्थों की लालसा बनी हुई है, लेकिन पदार्थों के प्राप्त न होने से जो स्वयं को अपरिग्रही कहता या समझता है, वह अपरिग्रही नहीं है किन्तु परिग्रही ही है । दशवैकालिक सूत्र के दूसरे अध्ययन में कहा है कि पदार्थ की लालसा तो है, परन्तु पदार्थ के न मिलने से वह त्यागी बना हुआ है और पदार्थ को भोग नहीं सकता है वह त्यागी नहीं है, किन्तु भोगी ही है । भगवती सत्र में भी गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने कहा कि सेठ और दरिद्री को अव्रत की क्रिया बराबर ही लगती है । सेठ के पास बहुत पदार्थ हैं और दरिद्री के पास कुछ भी नहीं है, फिर भी दोनों को समान रूप से अव्रत क्रिया लगने का कारण यही है कि दरिद्री के पास पदार्थ तो नहीं हैं लेकिन उसमें पदार्थ की लालसा है । इसी कारण दोनों को समान अव्रत की क्रिया लगती है। मतलब यह कि अपरिग्रही होने के लिए लालसा मिटाने और सन्तोष करने की आवश्यकता है । लालसा की उत्पत्ति का कारण इन्द्रियों की काम-भोग में प्रवृत्ति होगी, अथवा ऐसा करना चाहेंगे तब संसार के पदार्थों की लालसा भी होगी । मन की चंचलता के कारण ही इन्द्रियां विषयों की ओर दौडती हैं । यदि मन चंचल न हो, किन्तु स्थिर हो और वह इन्द्रियों का साथ न दे तो इन्द्रियां विषय भोग की ओर न दौड़ें । मन की चंचलता के कारण ही, इन्द्रियां विषय-भोग की ओर दौड़ती हैं और फिर लालसा होती है। मन की चंचलता का कारण ज्ञान का अभाव है । इन्द्रियां कौन हैं, उनका प्रात्मा से क्या सम्बन्ध है और संसार के
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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