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________________ असत्य नहिं असत्य सम पातक पुंजा, गिरि सम होहिं न कोटिक गुंजा।। -तुलसीदास जिस तरह करोड़ों गुजाओं (चिरमियों) का ढेर पहाड़ के समान नहीं हो सकता, इसी तरह अन्य पापों का समूह, झूठ के पाप के समान नहीं हो सकता । अर्थात् झूठ का पाप सब पापों से बढ़कर है । झूठ सत्य का विरोधी है । पहले कहा गया है कि धर्म का उत्पादक और परलोक में सूखदाता 'सत्य' ही है। इसके विरुद्ध असत्य, धर्म का नाशक और परलोक में दुःखदाता है । परलोक के लिये तो 'असत्य' हानिप्रद है ही, परन्तु इस लोक के लिये भी यह कैसा हानिकारक है, इसकी निन्दा के लिये शास्त्र में कहा हैजम्बू ! बितियं च अलियवयणं लहु सगलहु चवल भणियं भयकर-दुहकर-अयसकर-बेरकरगं अरतिरतिरागदेसमणसं किलेसवियरणं अलियनियडि-साइजोयबहुलं रणीयजण-णिसेवियं निसंसं अप्पञ्चयकारगं परमसाहुगरहणिज्जं परपीलाकारगं परमकण्ह-लेससहियं दुग्गति
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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