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यद्यपि सोमल अकारण ही, शांतमूर्ति गजसुकमाल मुनि के प्राणों का इस प्रकार ग्राहक बना था, लेकिन गजसुकमाल मूनि सत्य को पहचानते थे, इसी कारण न तो उन्हें दुःख ही हुआ, न सोमल पर क्रोध ही आया। लोगों को अपने किये हुए अपराधों का फल भोगने में भी दुःख और दण्ड देने वाले पर क्रोध होता है। इसका कारण सत्य का न जानना है । सत्य न जानने और उसकी शक्ति प्राप्त न करने से ही ऐसे लोग अपराध, बिलबिलाहट और क्रोध का पाप बांधते हैं ।
सत्य के बल के सामने अन्य बल कुछ नहीं है । सत्य का बल होने पर भय तो नाम मात्र को नहीं रहता, न दुःख ही होता है । सत्य को जान लेने और उसके द्वारा आत्मबल प्राप्त कर लेने से ही सुदर्शन सेठ ने अर्जुन को, जिसने ११४४ मनुष्य मार डाले थे और श्रेणिक जैसा प्रतापी भी जिसका कुछ न कर सकता था, परास्त कर दिया। इतना ही नहीं, अर्जुन को भी सत्य द्वारा प्रात्मा को बलवान् बनाने का उपाय बतलाकर, सच्चे मार्ग का पथिक बना दिया ।