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इस प्रकार चारों वे पाप, जो परिग्रह से पहले के चार आस्रवद्वार माने जाते हैं, परिग्रह के लिए ही सम्पन्न होते हैं । यदि परिग्रह का पाप न हो तो ऊपर कहे गये चारों पाप भी नहीं हो सकते ।
सारांश यह कि संसार के समस्त पाप-कार्य और संसार के समस्त अनर्थ परिग्रह के लिए ही होते हैं । परिग्रह सब पापों का मूल और सब अनर्थों की खान है । परिग्रह से होने वाले अथवा परिग्रह के लिए होने वाले पाप और अनर्थ का पूर्णतया वर्णन बहुत ही कठिन है, इसलिए इतना कह कर ही सन्तोष किया जाता है ।
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