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( २६१) माया, लोभ हैं। इस प्रकार परिग्रह समस्त पापों का केन्द्र है । सब पाप परिग्रह से ही उत्पन्न होते हैं । प्रश्नव्याकरण सूत्र में भी कहा है कि परिग्रह के लिए लोग हिंसा करते हैं, झूठ बोलते हैं, अच्छी वस्तु में बुरी वस्तु मिलाते हैं, परदारगमन तथा परदारहरण करते हैं, क्षधा, तृष्णा आदि कष्ट स्वयं भी सहते हैं और दूसरे को भी ऐसे कष्ट में डालते हैं, कलह करते हैं, दूसरे का बुरा चाहते हैं, दूसरे के लिए अपशब्द कहते हैं, दूसरे का अपमान करते हैं तथा स्वयं भी अपमानित होते हैं, सदैव चिन्तित रहते हैं और बहुतों का हृदय दुःखाते हैं । क्रोध, मान, माया, लोभ का उत्पादक परिग्रह ही है।
इस प्रकार शास्त्रकारों ने समस्त पापों का कारण परिग्रह ही बताया है । अनुभव से भी यह स्पष्ट है कि संसार में जितने भी पाप हैं वे सब परिग्रह के ही कारण हैं और परिग्रह के लिए ही किये जाते हैं । ऐसा कोई भी पापकर्म न होगा जो परिग्रह के कारण न किया गया हो। लोग इच्छा और मूर्छा के वश होकर ही प्रत्येक पाप करते हैं। जिसमें या जहां इच्छा-मूर्छा · नहीं है, उसमें या वहां किसी भी प्रकार का पाप नहीं है । ___संसार में जितनी भी हिंसा होती है, वह परिग्रह के लिए ही । परिग्रह के वास्ते ही लोग हिंसा करते हैं । शब्द रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के साधन राज्य, धन और स्त्री के लिए ही युद्ध हुए हैं और होते हैं । राम और रावण का युद्ध परिग्रह के लिए ही हुआ था । परिग्रह के लिए ही मणिरथ ने अपने भाई युगबाहु को मार डाला था * । - यहां स्त्री की इच्छा भी परिग्रह से ही मानी गई है ।