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________________ ( २६० ) द्रष्टा को यानी स्वयं को भूल जाता है । वह विचार भी नहीं करता कि मैं द्रष्टा, दृश्य में कैसे भूल रहा हूँ ? ' अज्ञान में पड़ा हुआ आत्मा, सांसारिक पदार्थों से ममत्व करके उनका संग्रह तो करता है, लेकिन आत्मा को सांसारिक पदार्थों से ममत्व करने और उनका संग्रह करने का अधिकार है या नहीं, यह एक विचारणीय बात है । सांसारिक पदार्थ आत्मा के तद्रूप भी नहीं हैं वे प्रात्मा का साथ भी छोड़ देते हैं- आत्मा के साथ या पास रहते भी नहीं हैं-फिर आत्मा किसी वस्तु को अधिकारपूर्वक अपनी कैसे कह सकता है और उनका संग्रह क्यों करता है ? वस्तुतः आत्मा का सांसारिक पदार्थों पर कोई अधिकार नहीं है । फिर भी अज्ञान के कारण आत्मा उनका संग्रह करता है, उनसे ममत्व रखता है और इस प्रकार स्वयं की हानि ही करता है। पापमूल परिग्रह परिग्रह पाप-बन्ध का कारण है । यह अन्तिम और प्रधान प्रास्रवद्धार है, प्रथम के चार प्रास्रवद्वारों का रक्षक एवं पोषक है । प्रथम के चार आस्रवों की उत्पत्ति इसी से है। यह समस्त पापों का कारण है । भगवती सूत्र के दूसरे शतक में गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने कहा है कि इच्छा मुर्छा और गुद्धि ( अर्थात् परिग्रह ) से क्रोध, माया, लोभ का अविनाभावी सम्बन्ध है । जहां इच्छा मूर्छा है, वहां क्रोध मान, माया, लोभ भी हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ, पापानुबन्ध चौकड़ी है । जहां क्रोध, मान, माया, लोभ हैं, वहां सभी पाप हैं और जहां परिग्रह है, वहां क्रोध, मान,
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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