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(२८१) ही धर्म की मर्यादा उल्लंघन की जाती है और ईश्वर के अस्तित्व से इन्कार किया जाता है। धर्म और ईश्वर विरोधी समस्त कार्य परिग्रह के कारण ही होते हैं ।
परिग्रह के लिए ही दुर्व्यसनों का सेवन किया-कराया जाता है । मांसभक्षण, मदिरापान, जुआ, निन्दा चुगली आदि सब दुर्व्यसन परिग्रह के कारण ही सेवन किये जाते हैं या कराये जाते हैं ।
छल कपट और अन्याय अत्याचार भी परिग्रह के लिए ही होता है । परिग्रह के लिए ही विश्वासघात का भयंकर पाप किया जाता है और परिग्रह के लिए ही न्यायाधीश कहलाने वालों द्वारा अन्याय किया जाता है ।
परिग्रह के लिए प्रकृति से भी विरोध किया जाता है । उसका सौन्दर्य नष्ट किया जाता है । जनता को प्रकृति दत्त लाभों से वंचित रखा जाता है । जंगल काट डाले जाते हैं, नदियों का पानी रोक दिया जाता है या बांट दिया जाता है तथा भूमि और पहाड़ों की खोद डाला जाता है । इस प्रकार प्राकृतिक सौन्दर्य और मनुष्य के लिए आवश्यक प्राकृतिक सुविधा भी नष्ट कर दी जाती है और उसके स्थान पर कृत्रिमता का पोषण किया जाता है ।
____ यह नियम है कि जो जिसका ध्यान करता है वह वैसा ही बन जाता है । प्रात्मा चेतन है और संसार के समस्त पदार्थ जड़ हैं । जब चेतन प्रात्मा जड़ पदार्थों का ही ध्यान करता रहेगा तब उसमें भी जड़ता आना सम्भव है। इसके सिवा जड़ दृश्य पदार्थों का ध्यान करने से आत्मा