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अर्थात् - धनवान् ( परिग्रही ) पुरुष धन की रक्षा के लिए रात को सोता भी नहीं है और पुत्र, स्वजन, राजा, दुष्ट, चोर, बैरी, बन्धु, स्त्री, मित्र अथवा परचक्र आदि से, यहां तक कि जो समस्त परिग्रह के त्यागी हैं उन गुरु से भी शंकित ही रहता है । उसको सभी की ओर से सन्देह रहता है क्योंकि धनवान् यानी परिग्रही अपनी ही जाति के मनुष्यों द्वारा उसी प्रकार दु:खित भी किया जाता है, जिस प्रकार मांसभक्षी पक्षियों द्वारा वह पक्षी दुःखित किया जाता है, जिसके पास मांस का टुकड़ा है ।
परिग्रह प्राप्त होने से पहले भी दुःख देता है प्राप्त होकर भी दुःख देता है और छूट कर भी दुःख देता है । हां, यह अन्तर अवश्य है कि बड़े परिग्रह के साथ बड़ा दुःख लगा है और छोटे के साथ छोटा दुःखं है लेकिन परिग्रह के साथ दुःख अवश्य है । उदाहरण के लिए एक व्यक्ति को फूलों की माला की इच्छा हुई और दूसरे व्यक्ति को मोतियों की माला की इच्छा हुई । फूल की माला थोड़े ही कष्ट से प्राप्त भी हो जायेगी, उसकी रक्षा की चिन्ता भी थोड़ी ही करनी पड़ेगी, उसके जाने का भय भी थोड़ा ही रहेगा और उसके जाने या नष्ट होने पर दुःख भी थोड़ा ही होगा । परन्तु मोती की माला अधिक कष्ट से प्राप्त होगी, उसकी रक्षा की चिन्ता भी अधिक करनी पड़ेगी, उसके जाने का भय भी अधिक रहेगा और यदि उसे चोर ले जावे, कोई छीन ले, या वह खो जावे, तो दुःख भी बहुत होगा । इस प्रकार थोड़े दुःख और अधिक दुःख का अन्तर तो अवश्य है, लेकिन परिग्रह के साथ दुःख अवश्य लगा हुआ है । इसीलिए किसी कवि ने कहा है