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हैं, वे भी दुःख देते है । जो प्राप्त है, उन्हें प्राप्त करने में भी दुःख उठाना पड़ा है, उनके प्राप्त हो जाने पर भी दुःख हो है और उनके जाने पर भी दुःख ही होता है । जिसके पास जितने अधिक पदार्थ हैं, उसको उतनी ही अधिक चिन्ता है, उतना ही भय है और उतनी ही अधिक अशांति है । उदाहरण के लिए एक आदमी के पास कुछ ही रुपये हैं और दूसरे के पास बहुत रुपये हैं । जिसके पास कुछ ही रुपये हैं उसे भी चिन्ता और भय तो रहेगा, परन्तु जिसके पास अधिक रुपये हैं, उसे चिन्ता भी अधिक रहेगी और भय भी अधिक रहेगा । उसको उस धन की रक्षा के लिए मकान, तिजोरी, ताले और पहरेदार भी रखने पड़ेंगे । यह सब होने पर भी चिन्ता तो बनी ही रहेगी । यह भय सदा ही रहेगा कि कोई मेरा धन न ले जावे । रात को सुख से नींद भी न आयेगी और नौकर चाकर स्त्री, पुत्र पर भी सन्देह रहेगा तथा उनकी ओर का भय भी रहेगा । इसी प्रकार संसार की जितनी भी आपत्तियां हैं, सब परिग्रह के कारण ही हैं । चोर, डाकू और प्राग - पानी आदि का भय परिग्रही को ही होता है । राजकोप आदि आपत्तियां भी परिग्रही पर ही आती हैं । किसी कवि ने कहा ही है
संन्यस्त सर्वसंगेभ्यो गुरुभ्योऽप्यतिशंक्यते । धनिभिर्धनरक्षार्थं रात्रावपि न सुप्यते ॥ १ ॥ सुतस्वजनभूपालदुष्टचौरा रिविड्वरात् । बन्धु मित्रकलत्रेभ्यो धनिभिः शंक्यते भृशं ॥ २ ॥ स्वजातीयैरपि प्राणी सद्योऽभिद्यते धनी । यथात्र सामिषः पक्षी पक्षिभिर्वद्धमण्डलैः ॥ ३॥