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________________ ( २७८ ) ने क्रान्ति कर दी, जिससे वहां के उन लोगों को बहुत कष्ट भोगना पड़ा, जिन्होंने अपने पास आवश्यकता से अधिक पदार्थों का संग्रह कर रखा था । लोग पदार्थों का संग्रह इच्छा मूर्छा के वश होकर तो करते ही हैं, लेकिन उनमें प्रधानतः बिना श्रम किये ही सांसारिक सुख भोगने और इस प्रकार स्वयं को बड़ा सिद्ध करने तथा इच्छा के कारण उत्पन्न अभिमान का पोषण करने की भावना भी रहती है । इस भावना से प्रेरित होकर वे संसार के अधिक से अधिक पदार्थों पर अपना आधिपत्य करने का प्रयत्न करते हैं और जिन लोगों को पदार्थों की श्रावश्यकता है - उन पदार्थों के बिना जिन्हें कष्ट है - उन लोगों से बदला लेकर फिर उन्हें वे पदार्थ देते हैं । भूमिकर और सूद अथवा साम्राज्यवाद और पूंजीवाद इस भावना का परिणाम है । २ - मुद्रा का दुष्परिणाम लोगों में उसी पदार्थ को संग्रह करने, उसी पदार्थ को अधिक मात्रा में अपने अधिकार में करने की भावना रहती है, जिसके द्वारा अन्य समस्त पदार्थ सरलता से प्राप्त हो सकें । आजकल ऐसा पदार्थ स्वर्ण - मुद्रा या रजत मुद्रा माना जाता है । जिस समय मुद्रा का प्रचलन नहीं था, उस समय के लोगों में – आज के लोगों की तरह संग्रह बुद्धि भी नहीं होती थी । न उस समय संसार में आज का सा वैषम्य, आज की सी बेकारी और आज का सा दुःख ही होता था । जब विनिमय - मुद्रा के अधीन नहीं था, तब अन्य वस्तुनों का ही परस्पर विनिमय होता था । उदाहरण के लिए उस
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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