________________
( २७६ ) है । जैसे आग जंगल को जला देती है, उसी प्रकार परिग्रह सुकृत को नष्ट कर देता है । जिस प्रकार बादलों का दुश्मन पवन है, उसी प्रकार मदुता का दुश्मन परिग्रह है । जैसे हवा पाने पर बादल नहीं ठहर सकते, उसी प्रकार जहां परिग्रह है वहां मृदुता नहीं रह सकती । न्याय को तो परिग्रह उसी प्रकार नष्ट कर देता है, जिस तरह कमलवन को पाला नष्ट कर देता है । तात्पर्य यह कि परिग्रह, कलह क्रोध दुर्व्यसन तथा द्वेष का. पोषक और सुकृत, मृदुता तथा न्याय का नाशक है ।
परिग्रह द्वारा होने वाली हानि का यह स्थूल रूप बताया गया है । परिग्रह समस्त दुःखों का कारण है । परि. ग्रह से व्यक्ति की भी हानि होती है, समाज की भी । यह प्राध्यात्मिक हानि का कारण है और शारीरिक हानि का भी । इसके द्वारा क्या-क्या हानि होती है, यह संक्षेप में बताया जाता है।
(१) संग्रहबुद्धि का फल _इस मुर्छा रूप ममत्व से संग्रह बद्धि का जन्म होता है । इच्छा मूर्छा होने पर किसी पदार्थ की ओर से सन्तोष नहीं होता ।। चाहे जितनी सम्पत्ति हो, चाहे जैसा राज्य हो और चाहे जितनी स्त्रियां हों, फिर भी यही इच्छा रहती है कि मैं और संग्रह करू । इस प्रकार की संग्रहबुद्धि ने ही संसार में दु.ख फैला रखा है। संसार में जितने भी दुःखी हैं, वे सब संग्रह बुद्धि के प्रताप से ही। वैज्ञानिकों का कथन है कि जीवन के लिए आवश्यक समस्त पदार्थ प्रकृति इस परिमारग में उत्पन्न करती है कि जिससे सबकी आवश्यकता