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परिग्रह से हानि
कलहकल भविन्ध्यः क्रोधगृध्रश्मशानम् ।
व्यसन भुजगरन्ध्र द्वेष दस्युप्रदोषः || सुकृतवन दवाग्निर्माद्द' वांभोदवायुनयनलिनतुषारोऽत्यर्थमर्थानुरागः ॥
अर्थात् - अर्थानुराग ( ममत्व ) कलह रूपी बालहाथी को क्रीड़ा करने के लिये विन्ध्याचल के समान है । जिस प्रकार हाथी का बच्चा वन (पर्वत) में क्रीड़ा करता है, उसी प्रकार जहां परिग्रह है, वहां कलह क्रीड़ा करता है । कलह का स्थान परिग्रह ही है । क्रोध रूपी गिद्ध के लिये परिग्रह श्मशान तुल्य है । जैसे गिद्ध को श्मशान प्रिय होता हैवहां उसे भोजन मिलता है- उसी प्रकार क्रोध का स्थान परिग्रह है। जहां परिग्रह है, वहां क्रोध भी अवश्य है, अथवा क्रोध वहीं रहता है, जहां परिग्रह है । परिग्रह, दुर्व्यसन रूपी सांप के लिए बांबी के समान है । जहां परिग्रह है, वहां सभी प्रकार के दुर्व्यसन हैं । जैसे सन्ध्या होने पर चोर डाकुओं का जोर चलता है, उसी प्रकार परिग्रह होने पर द्वेष का भी जोर चलता है । द्वेष वहीं रहता है, जहां परिग्रह है । सुकृत रूपी वन के लिये परिग्रह अग्नि के समान