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________________ (१४) इसमें विजयशाली होने पर, उसका प्रभाव प्राणियों पर ही नहीं, किन्तु जड़ पदार्थों पर भी पड़ता है । सत्यनिष्ठ पुरुष के प्रभाव से, अग्नि शीतल हो जाती है, विष अमृत बन जाता है और अस्त्र-शस्त्र फूल से कोमल हो जाते हैं। जब इतना हो जाता है तो कर-प्राणियों की क्रूरता दूर होने में सन्देह ही क्या है ? इसके विपरीत अर्थात् अपने दुर्गुणों को दूर किये बिना, केवल दूसरों को दबाने के लिए जो सत्याग्रह किया जाता है, वह सत्याग्रह दुराग्रह हो जाता है और स्वयं करने वाले का ही नाश कर देता है। ऐसे भी अनेक उदाहरण विद्यमान हैं। भगवान् महावीर ने सत्याग्रह का प्रयोग पहले अपने ही ऊपर कर लिया था। इससे वे चण्डकौशिक ऐसे विषधर सर्प के स्थान पर लोगों के मना करते हुए भी निर्भयतापूर्वक चले गये । उस चण्डकौशिक ने-जिसकी दृष्टि मात्र से ही जीवों को मृत्यु का आलिंगन करना पड़ता थाभगवान् महावीर को अपने भयंकर विषेले दांतों से काटा भी, लेकिन सत्य के प्रताप से वह विष भगवान् की किंचित् मात्र भी हानि न कर सका। उल्टे चण्डकौशिक की तामसी प्रकृति भगवान् महावीर की सात्विकी-प्रकृति से टकरा कर शांत हो गई और भगवान् से बोध पाकर वह कल्याण-मार्ग का पथिक बना। जिसने सत्य के द्वारा अपनी आत्मा को बलवान् बना लिया है, वह मृत्यु से भी भय नहीं करता । प्राणों के असीम संकट में पड़ने पर भी, ऐसा आत्मबली धैर्य से जरा भी विचलित नहीं होता और प्रसन्नतापूर्वक अपने प्राणों का त्याग करता है।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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