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अतएव अत्याचार का अत्याचार से नाश करने का विचार “निरर्थक है । अत्याचार से न तो अत्याचार ही भली भाँति मिटता है, न संसार में शांति ही फैलती है। इसका वास्तविक उपाय तो सत्याग्रह ही है क्योंकि सत्याग्रह में दूसरे के नाश का हेतु नहीं रहता, किन्तु उसे सुधारने का हेतु रहता है ।
. अत्याचार का प्रभाव, केवल शरीर पर ही पड़ा करता है, मन पर नहीं। और जब तक मन पर प्रभाव न पड़े, तब तक जिस कार्य के लिए अत्याचार किया जाता है, उस कार्य में पूर्णतया और स्थायी सफलता प्राप्त नहीं होती । लेकिन सत्याग्रह का प्रभाव मन पर पड़ता है और मन सारे शरीर का राजा है । इसलिए सत्याग्रह द्वारा प्राप्त सफलता स्थायी और शांतिप्रद होती है ।
जिस समय भारत में चारों ओर हिंसा का ही साम्राज्य था, लोग यज्ञ के नाम पर अनेक मूक पशुओं का निर्दयतापूर्वक वध कर डालते थे, वे पशुओं को अपना खाद्य समझते थे, उस समय भगवान महावीर ने सत्याग्रह (सत्य-संदेश) द्वारा ही उस हिंसा को मिटाकर शांति स्थापित की थी । भगवान् महावीर राजपूत थे । यदि वे चाहते तो राज्य-सत्ता से भी हिंसा को मिटा सकते थे । लेकिन इस तरह से मिटाई हुई हिंसा निर्मूल नहीं होती । भगवान् महावीर के न रहते ही, या राज्य-शक्ति में शिथिलता आते ही वह हिंसा पुनः प्रचलित हो जाती। ... सत्याग्रह एक महाशस्त्र है। उसका प्रयोग अत्याचारों पर रामबाण की तरह अचूक होता है । हाँ, शर्त यही है कि प्रयोग करने के पहले प्रयोग करने वाला, अपने दुर्गुणों को दूर करके, अपने ही ऊपर सत्याग्रह का पूरा प्रयोग कर ले ।