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इच्छा-मूर्जा
कामानां हृदये वासः संसार इति कीर्तितः । . तेषां सर्वात्मना नाशो मोक्ष उक्तो मनीषिभिः ।
अर्थात्- बुद्धिमान लोग कहते हैं कि हृदय में कामनाओं का निवास ही 'संसार' (जन्म-मरण) है और समस्त कामनाओं का नाश ही 'मोक्ष' (जन्म-मरण से छूटना) है ।
___ पहले कहा जा चुका है कि ममत्व ही परिग्रह है । वह ममत्व इच्छा तथा मूर्छा रूप होता है। इस प्रकार इच्छा या मूर्छा का नाम ही ममत्व या परिग्रह है । इसलिये अब यह देखते हैं कि इच्छा और मूर्छा का जन्म कैसे होता है तथा इनका स्वरूप कैसा है ?
संसार में जन्म लेने वाले प्राणी कर्मलिप्त होते हैं । यदि कर्मलिप्त न हों तो संसार में जन्म ही न लेना पड़े । यह बात दूसरी है कि कोई जीव कर्मों से कम लिप्त है और कोई अधिक लिप्त है । लेकिन जो संसार में जन्मा है वह कर्मलिप्त अवश्य है। कर्मलित होने के कारण आत्मा अपने स्वरूप को नही जानता । जानता भी है तो विश्वास या दृढ़ता नहीं रखता । आत्मा सच्चिदानन्द स्वरूप है । यह