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( २६५ ) इसी प्रकार ' मूर्छा' 'गृद्धि' 'आसक्ति' 'मोह' और 'ममत्व' भी कुछ भेद के साथ पर्यायवाची शब्द हैं । जो वस्तु अप्राप्त है, उसकी चाह होना, उसके न मिलने पर दुःखित और मिलने पर प्रसन्न होना, इच्छा, तृष्णा या कामना है और जो वस्तु प्राप्त है, उसकी रक्षा चाहना, उसकी रक्षा का प्रयत्न करना, उसकी रक्षा के लिए चिन्तित रहना, उसकी कोई हानि न हो, उसे कोई ले न जावे या वह वस्तु चली न जावे, इस प्रकार का भय होना, उस वस्तु में अनुरक्त रहना, उसमें अपना जीवन मानना और उसके जाने पर दुःख करना, यह मुर्छा है । इस प्रकार की इच्छा या मुर्छा का नाम ही ममत्व है और जिस वस्तु के प्रति ममत्व है, वही परिग्रह है । तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता श्री उमा स्वामी ने कहा हैं
मूर्छा परिग्रहः अर्थात् – मूर्छा ही परिग्रह है ।