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प्रतिकूल तथा अरुचिकर पदार्थ से घृणा होना दुगु'छा (जुगुप्सा) कहलाता है । ये छह भी आभ्यन्तर परिग्रह में हैं।
चार कषाय- क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों कषाय भी आभ्यन्तर परिग्रह में हैं ।
३- बाह्य परिग्रह - बाह्य परिग्रह के प्रधानतः जड़ और चेतन ऐसे दो भेद हैं । सुविधा की दृष्टि से शास्त्रकारों ने बाह्य परिग्रह के दो भेदों को छः भागों में विभक्त कर दिया है । उनका कथन है कि जितना भी बाह्य परिग्रह है अर्थात् दृश्यमान जगत् के जिन पदार्थों से आत्मा को ममत्व होता है उन सब पदार्थों को छः श्रेणियों में बांटा जा सकता है । वे छः श्रेणी इस प्रकार हैं धन-धान्य, क्षेत्र, वास्तु, द्विपद और चौपद । इन छः श्रेणियों में प्रायः समस्त पदार्थ आ जाते हैं । यदि चाहो, तो इन छः भेदों को भी कनक और कामिनी इन दो भेदों में लाया जा सकता है । जड़ और चेतन पदार्थों में से किन्हीं उन दो पदार्थों को, जिनके प्रति सबसे अधिक ममत्व होता है, पकड़ लेने से दूसरे समस्त पदार्थ भी उनके अन्तर्गत
आ जायेंगे । विचार करने पर मालूम होगा कि मनुष्य को वाह्य पदार्थों में सबसे अधिक ममत्व कनक और कामिनी से होता है । कनक अर्थात् सोना - के अन्तर्गत समस्त जड पदार्थ आ जाते हैं क्योंकि बाह्य पदार्थों में मनुष्य को इन दोनों से अधिक किसी पदार्थ से ममत्व नहीं होता । उत्तराध्ययन सूत्र में गौतम स्वामी को उपदेश देते हुए भगवान् महावीर ने भी कहा है