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' चेतन । जड़ में वे समस्त पदार्थ श्रा जाते हैं, जिनमें जान नहीं है, जो निर्जीव हैं । जैसे - वस्त्र, पात्र, चांदी, सोना, सिक्का, मकान आदि । चेतन में मनुष्य, पशु-पक्षी, पृथ्वी, वृक्ष आदि समस्त सजीव पदार्थों का ग्रहण हो जाता है । यह संसार, जड़ और चेतन के संयोग से ही है । संसार में जो कुछ भी दिखाई देता है, वह या तो जड़ है या चेतन है । इसलिए जड़ और चेतन भेद में संसार के समस्त पदार्थ आ जाते हैं ।
भगवती सूत्र में गौतम स्वामी के प्रश्न करने पर भगवान् ने कर्म, शरीर और भण्डोपकरण ये तीनों परिग्रह बताये हैं । ये तीनों परिग्रह भी बाह्य और आभ्यन्तर भेदों में आ जाते हैं । इसलिए इनके विषय में पृथक् कुछ कहने की आवश्यकता नहीं रहती । भगवान् ने ये तीन परिग्रह संभवतः साधु के लिए बताये हैं अर्थात् इस दृष्टि से बताये हैं कि साधु के भी ये तीन परिग्रह लगे हुए हैं और जब तक साधु इन तीनों से नहीं निवर्तता तब तक उसे मोक्ष नहीं मिल सकता । जो भी हो, यहां तो परिग्रह के भेद बताने हैं ।
इस भेद-वर्णन का यह अर्थ नहीं है कि पदार्थ ही परिग्रह है । पदार्थ परिग्रह नहीं है, किन्तु उसके प्रति जो ममत्व भाव है वह ममत्व - भाव ही परिग्रह है और इस कारण जिस पदार्थ के प्रति ममत्व-भाव है, औपचारिक नय से वह पदार्थ भी परिग्रह माना जाता है क्योंकि ममत्वभाव पदार्थ पर ही होता है, इसलिए ममत्व - भाव होने पर ही पदार्थ ' परिग्रह' है, लेकिन उस समय तक कोई भी पदार्थ परिग्रह रूप नहीं है, जब तक कि स्वयं में उसके