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ममत्व-भाव है, वे समस्त वस्तुएं परिग्रह में हैं । जिसके प्रति ममत्व-भाव होने से जन्म-मरण की वृद्धि होती है, जो
आत्मा को उन्नत होने से रोकता है और जो मोक्ष में बाधक है वही पदार्थ परिग्रह है । फिर चाहे वह पदार्थ जड़ हो, चेतन हो, रूपी हो, अरूपी हो और समस्त लोक जितना बड़ा हो अथवा परमारण जैसा छोटा हो । जो क्रोध मान माया लोभ का उत्पादक है, वही परिग्रह है । शास्त्रकारों का कथन है कि ज्ञान संसार-बन्धन से मुक्त करने वाला है, लेकिन यदि उसके कारण किंचित् भी अभिमान उत्पन्न हुआ है, तो वह ज्ञान भी परिग्रह है । धर्म-पालन के लिए शरीर का होना आवश्यक है, परन्तु यदि शरीर पर थोडा भी ममत्व है, तो शरीर परिग्रह है। इस प्रकार जिसके प्रति ममत्व. भाव है, जिससे काम, क्रोध, लोभ या मोह का जन्म हुअा है, वह परिग्रह है परिग्रह आत्मा के लिए वह बन्धन है, जिससे प्रात्मा पुनः पुनः जन्म-मरण करता है । परिग्रह आत्मा के लिए बोझ है, जो आत्मा को उन्नत नहीं होने देता और मोक्ष की ओर नहीं जाने देता ।
१-- परिग्रह के भेद शास्त्रकारों ने परिग्रह के ‘बाह्य' और 'आभ्यन्तर' ऐसे दो भेद किये हैं । उन्होंने आभ्यन्तर परिग्रह में मिथ्यात्व अविरति प्रमाद कषाय आदि को माना है । जिनकी उत्पत्ति मुख्यतः मन से है और जिनका निवासस्थान भी मन ही है, अर्थात् जो मन अथवा हृदय से ही सम्बन्ध रखते हैं और विचार रूप हैं, उन सबकी गणना आभ्यन्तर परिग्रह में है । बाह्य परिग्रह के भी दो भेद किये गये हैं- 'जड़' और