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अगर तुम्हें प्रतीति है कि धन तुम्हारे लिए है, धन के लिए तुम नहीं हो, तो धन के लिए कभी पाप तो नहीं करते ?
असत्य भाषण करना, विश्वासघात करना, पिता-पुत्र के बीच क्लेश होना, यह सब किसलिए है ? इन सब बुराइयों का मूल कौन है ? धन के लिए संसार में घोर क्लेश हो रहे हैं, पापाचरण हो रहे हैं । इससे स्पष्ट मालूम होता है कि लोगों ने धन को साधन नहीं, साध्य मान लिया है और वह प्रात्मा से भी अधिक आत्मीय बन गया है। लोगों के इस भ्रम के कारण ही संसार में दुःख व्याप रहा है. । धन को साधन मान कर लोकहित के कार्यों में व्यय करना, धन का सदुपयोग है ।
. . धन के सद्व्यय के लिए हृदय में उदारता चाहिए । जहां हृदय में उदारता नहीं, वहां धन का सद्व्यय नहीं हो सकता । धन के प्रति हृदय में ममता रहती है, उसका त्याग करने में ही आत्मा का कल्याण है ।
वित्तण ताणं न लभे पमत्त
' प्रमादी पुरुष धन से त्राण-रक्षण नहीं पा सकता । धन किसी को मौत से नहीं बचा सकता । वह दुःखों का सर्जन करता है। ... धन को साधन मान कर, उसके प्रति निर्मम बनना, उसे आत्मा को न ग्रसने देना, इतनी महत्त्व की बात है कि उसके बिना जीवन का अभ्युदय सिद्ध नहीं हो सकता ।