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उसका त्याग कर देना मैंने अपना सौभाग्य समझा है । उससे मुझे शांति और सुख मिला है। ऐसा करके मैंने निराकुलता का आनन्द अनुभव किया है । तुम्हें जो त्याग का उपदेश करता हूँ तो इसीलिए कि तुम सुखशांति का इसी उपाय से लाभ कर सकोगे । सम्यग्दृष्टि का लक्ष्य यही है कि वह अपनी सम्पत्ति परोपकार के लिए समझे और आप उससे अलहदा रहता हुआ अपने को उसका ट्रस्टी अनुभव करे ।
मित्रो ! आप लोगों के पास जो द्रव्य है उसे अगर परोपकार में, सार्वजनिक हित में और दीन-दुखियों को साता पहुंचाने में न लगाया तो याद रखना, इसका व्याज चुकाना भी कठिन हो जायेगा । ऐसे द्रव्य के स्वामी बन कर आप फूले न समाते होंगे कि चलो हमारा द्रव्य बढ़ गया है, मगर शास्त्र कहता है और अनुभव उसका समर्थन करता है कि द्रव्य के साथ क्लेश बढ़ा है । जब श्राप बैंक से ऋण रूप में रुपया लेते हैं तो उसे चुकाने की कितनी चिन्ता रहती है । उतनी ही चिन्ता पुण्य रूपी बैंक से प्राप्त द्रव्य को चुकाने की क्यों नहीं करते ? समझ रखो, यह सम्पत्ति तुम्हारी नहीं है । इसे परोपकार के अर्थ अर्पण कर दो । याद रखो कि यह दूसरे की जोखिम मेरे पास धरोहर है । अगर इसे अपने पास रख छोडूंगा तो यह तो यहीं रह जायगी, लेकिन इसका वदला चुकाना मेरे लिए बहुत भारी पड़ जायगा ।
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कनक और कामिनी की लोलुपता ने संसार को नरक बना डाला है । आजकल मुद्रा देवी ने सोने, चांदी, तांबे आदि के सिक्कों ने कितनी अशांति फैला रखी है । तुम लोग रात-दिन पैसे के लिए दौड़-धूप करते रहते हो मगर