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( २५२ ) ज्ञानीजन तृष्णा के पीछे नहीं दौड़ते । उन्होंने समझ लिया है कि अगर कोई अपनी परछाई पकड़ सकता है तो तृष्णा की पूर्ति कर सकता है । मगर अपनी परछाई के पीछे कोई कितना हो दौड़े वह आगे-आगे दौडती रहेगी, पकड़ में नहीं आवेगी । इसी प्रकार तृष्णा की पूर्ति के लिए कोई कितना ही उपाय करे मगर वह पूरी नहीं होगी। ज्यों-ज्यों परछाई के पीछे दौड़ने का प्रयत्न किया जाता है, त्यों-त्यों वह आगे बढ़ती जाती है । मगर मनुष्य जब उससे विमुख हो जाता है, तब वह लौट कर उसका पीछा करने लगती है । इस प्रकार परछाई के पीछे दौड़ कर अपनी शक्ति का नाश करना व्यर्थ है और तृष्णा की पूर्ति करने के लिए मुसीबत उठाना भी वृथा है।
ज्ञानीजन भलीभांति जानते हैं कि माया का मालिक होना एक बात है और गुलाम होना दूसरी बात है । माया का गुलाम माया के लिए झूठ बोल सकता है, मगर माया का मालिक ऐसा नहीं करेगा । अगर न्याय नीति के अनसार माया रहे तो वह उसे रखेगा, अगर वह अन्याय के साथ रहना चाहेगी तो उसे निकाल बाहर करेगा । यही बात अन्य सांसारिक सुख-सामग्री के सम्बन्ध में समझनी चाहिए ।
ज्ञानी पुरुषों ने तृष्णातुर और धनलोलुपजनों को चेतावनी देते हुए कहा है :
तुम समझते हो हमने तिजोरी में धन को कैद कर लिया है, परन्तु धन समझता है कि हमने इतने बड़े धनी को अपना पहरेदार मुकर्रर कर लिया है।