SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११) अर्थात् - सत्य के बल से जला देने के स्वभाव वाली अग्नि शीतल हो जाती है, इबा देने वाला अथाह जल थाह वाला हो जाता है, काटने वाली तलवार भी नहीं काट सकती पौर भयंकर विषधर सर्प रस्सी के समान हो जाता है । _ आवश्यक सूत्र में कहा है कि-"सत्यवादी सत्य के प्रभाव से समुद्र या जल की बाढ़ में नहीं डूब सकता, किन्तु उसके लिए वह जल थाह हो जाता है । दिशा को भूल जाने पर, यथा-स्थान ले जाने वाले सैन्यादि से युक्त हो जाता है । अग्नि-उपद्रव उसकी कोई हानि नहीं कर सकता । तपाया हुआ तेल, लोहा, शीशा आदि वस्तुएं हाथ में लेने पर उसका हाथ नहीं जला सकतीं। सत्यधारी पर्वत से गिराये जाने पर भी नहीं मर सकता एवं खङ्गधारी शत्रुनों में चारों पोर से घिर जाने पर भी, उनके बीच से अक्षत शरीर बच आता है और वध, बन्धन अभियोग, वैर आदि घोर उपद्रवों से बाल बाल सुरक्षित रहता है। सत्य के पालन करने वालों में ऐसी दिव्य शक्ति होती है कि स्वयं देवता भी उनके समीप चले आते हैं। जो मनुष्य सत्य का आचरण करने लग जाता है, वह लोगों में देव के समान पूजनीय हो जाता है। उसका आत्म-बल बढ़ जाता है और वह उस आत्म-बल द्वारा, महान् से महान कार्य भी कर सकता है । आत्म-बल किसी भी बल से कम नहीं है । इस बल के सामने भौतिक बल तुच्छ, हेय और नगण्य है । .. जिन तोपों और मशीनगनों के नाम मात्र से लोग कांप उठते हैं, जिनकी गड़गड़ाहट की भयंकर ध्वनि से, लोगों के रोम रोम खड़े हो जाते हैं और गर्भवती स्त्रियों के गर्भ
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy