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(१०) और अनेक व्रतधारियों द्वारा स्वीकार किया हुआ संसार में सारभूत (निचोड़) है । सत्य क्षोभ करने के योग्य न होने से महासमुद्र से भी बढ़कर गम्भीर, विचलित न होने के कारण मेरु पर्वत से भी अधिक स्थिर, सन्ताप को दूर करने के कारण चन्द्रमण्डल से भी अधिक सौम्य, वस्तु-स्वरूप का यथार्थ प्रकाशक होने से सूर्यमण्डल से भी अधिक तेजस्वी, अति-निर्दोष होने के कारण आकाशमण्डल से भी अधिक . स्वच्छ, और सत्य-प्रेमियों के हृदय को वश में रखने के कारण गन्धमादन-पर्वत से भी अधिक सुगन्धित है।' सत्य के विषय में भर्तृहरि ने कहा है
'सत्यं चेत्तपसा च कि ?' यदि सत्य विद्यमान है तो तप करे तो क्या और न करे तो क्या ? अर्थात् तप से भी सत्य का प्रभाव अधिक है।
चाणक्य ने अपनी नीति में कहा है:मुक्तिमिच्छसि चेत्तात, विषयान्विषवत्त्यज । क्षमार्जवदयाशौचं, सत्यं पीयूषवत्पिव ॥
'हे भाई यदि आप मुक्ति के इच्छुक हैं तो विषयों को विष के समान छोड़कर, सहन-शीलता, सरलता, दया, हृदय की पवित्रता और सत्य को अमृत की भांति पीयो।' ___ सत्य की महिमा बतलाते हुए कहा गया है:सत्येनाग्निर्भवेच्छीतो, आगाधं धत्तेऽम्बु सत्यतः । नासिश्छिनत्ति सत्येन, सत्याद्रज्जूयते फणी ॥