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हैं, यानी वाजीकरण आदि औषधियों का सेवन करते हैं, या , कामोद्दीपन की चेष्टा करते हैं और समझते हैं कि इसमें हमारे व्रत को कोई हानि नहीं पहुंचती । लेकिन ऐसा करने से स्वदार के सेवन में सन्तोष नहीं रहता, किन्तु असन्तोष बढ़ जाता है। इसलिए व्रतधारी को काम-भोग की अभिलाषा तीव्र करने का उपाय न करना चाहिए । ऐसा न करने से व्रत में अतिचार होता है और व्रत दूषित हो जाता है।
इन अतिचारों को जान कर इनसे बचना, देशविरति ब्रह्मचारी के लिए आवश्यक है ।