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( २४०) पर यानी मैथुन क्रिया रूप में हो जाने पर व्रत नष्ट हो जाता है । इस अतिचार का दूसरा अर्थ यह भी है कि अपनी स्त्री भी जो अल्पवयस्का है, भोग योग्य नहीं है, ऐसी स्त्री से सम्भोग करना अनाचार तो नहीं, किन्तु अतिचार अवश्य है । कारण ऐसा कार्य बलात् किया जाता है। बाल-विवाह से ऐसा होता है।
दूसरा अतिचार
दूसरा अतिचार अपरिगृहीता गमन है । परदार से निवर्तने वाले बहत से लोग, परदार-त्याग का यह अर्थ लगाते हैं कि जो स्त्री दूसरे की है, जिसका स्वामी कोई दूसरा पुरुष है, उस स्त्री से मैथुन करने का हमने त्याग लिया है, लेकिन जो स्त्री किसी दूसरे की है ही नहीं, जिसका कोई नियत पति ही नहीं है-जैसे वेश्या- या जिसका विवाह ही नहीं हुआ या विवाह तो हुआ है, लेकिन अब वह पतिविहीना है-जैसे विधवा या परित्यक्ता-ऐसी स्त्री के साथ मैथुन करने से लिये हुए त्याग में कोई दूषण नहीं होता । यद्यपि पर-स्त्री के त्याग में उन सभी स्त्रियों का त्याग हो जाता है, जो अपनी नहीं हैं, फिर भी कई लोग इस प्रकार गुजाइश निकालने लगते हैं। लेकिन इस प्रकार की गुंजाइश निकाल कर, जो स्त्री अपनी नहीं है, उस स्त्री से मैथुन करने के लिए तैयार हो जाना, त्याग की प्रतिज्ञा को दूषित करना है। अतिचार की सीमा तक-यानी मैथुन करने की तैयारी तक-तो त्याग की प्रतिज्ञा दूषित ही होती है, लेकिन अतिचार की सीमा का उल्लंघन होते ही-अनाचार होने परलिया हुआ व्रत नष्ट हो जाता है। इस अतिचार का दूसरा