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________________ ( २३६) सदारसंतोसिए पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तंजहा-इत्तरियपरिग्गहियागमणे, अपरिगहियागमणे अनंगकीडा, परविवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे । ___" स्वदारसन्तोष-व्रत के पांच अतिचार जानने योग्य हैं, लेकिन आचरण योग्य नही हैं । वे अतिचार ये हैंइत्वरपरिगृहीता गमन, अपरिगृहीता गमन, अनंग क्रीड़ा, पर विवाह करण, कामभोग में तीव्र अभिलाषा । पहिला अतिचार । देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत का पहिला अतिचार, इत्वरपरिग्रहीता गमन है । बहुत लोग स्वदारसन्तोषव्रत लेकर भी यह गुजाइश निकालने लगते हैं कि हमने स्वदार का आगार रखा है, अतः यदि किसी स्त्री को कुछ समय के लिये रुपये पैसे देकर -- या बिना दिये हो- अपनी बना ली जावे और उसके साथ स्वदारका सा व्यवहार किया जावे, तो इससे स्वदारसंतोष-व्रत में कोई दूषण नहीं पाता । यद्यपि स्वदारसन्तोष-व्रत में, केवल स्वदार- यानी जिसके साथ, देश और समाज प्रचलित रीति से विवाह हना है, उसी का आगार रहता है, फिर भी कई लोग उक्त प्रकार की गुंजाइश निकालने लगते हैं । लेकिन इस प्रकार की गुंजाइश निकाल कर जो अपनी नहीं है, उस स्त्री को थोड़े समय के लिए अपनी बना कर, उसके साथ मैथुन करने के लिए तैयार हो जाना अतिचार है । ऐसा करना जब तक अतिचार के रूप में है, तब तक तो व्रत में दूषण ही लगता है- व्रत नष्ट नहीं होता, लेकिन इस प्रकार का कार्य अनाचार के रूप में होने
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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