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ब्रह्मचर्य-व्रत के अतिचार
व्याख्या
. शास्त्र में प्रत्येक व्रत की चार मर्यादाएं बतलाई गई है; अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार ओर अनाचार । व्रत को उल्लंघन करने का संकल्प करना अतिक्रम है । इस संकल्प को पूरा करने के लिए सामग्री जुटाना व्यतिक्रम है । व्रत को उल्लंघन करने के संकल्प को कार्यरूप में परिणत करने के लिए तैयार हो जाना अतिचार है और व्रत का उल्लंघन करने के संकल्प को पूरा कर डालना यानी व्रत को तोड़ डालना अनाचार है ।
यद्यपि व्रत में दूषण तो अतिक्रम और व्यतिक्रम से भी लगता है, लेकिन मानव-स्वभाव को दृष्टि में रख कर व्यवहार में अतिक्रम और व्यतिक्रम से व्रत दूषित नहीं माना जाता, किन्तु अतिचार से व्रत दूषित माना जाता है और अनाचार से तो व्रत नष्ट ही हो जाता है । इसलिए प्रत्येक व्रत के अतिचारों को जान कर उनसे बचना आव. श्तक है।
देशविरति ब्रह्मचर्य व्रत के भगवान् महावीर ने पांच अतिचार बताये हैं, जो इस प्रकार हैं