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________________ ( २३६) और परलोक में वे ही हानियां हैं, जो व्यभिचारी पुरुष के लिए बताई गई हैं । अन्य ग्रन्थकारों ने भी कहा हैव्यभिचारात्तु भर्तुः स्त्री लोके प्राप्नोति निन्द्यताम् । शृगालयोनि चाप्नोति पापरोगैश्च पोड्यते ॥ मनुस्मृति। स्वपति-संतोषव्रत पालन करने के लिए स्त्रियों को भी उन नियमों का पालन करना आवश्यक है, जो नियम स्वदारसंतोषव्रत लेने वाले पुरुषों के लिए बताये हैं । बल्कि धर्म-सहायिका होने के कारण स्त्रियों पर अपने पति को पत्नी व्रत पर स्थिर रखने एवं नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी और आ पड़ती है । स्वपतिसंतोष-व्रत की आराधिका स्त्री ऐसे कोई कार्य नहीं करती, जिनके करने से उसके या उसके पति के व्रत में दोष लगता हो या व्रत से संबन्ध रखने वाले नियम भंग होते हों । १२-व्रत-रक्षा के उपाय । देशविरति ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए उन नियमों को आदर्श मान कर यथासम्भव उनका अनुसरण करना उचित है, जो नियम सर्वविरति ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए बताये गये हैं । यह बात दूसरी है कि देशविरति ब्रह्मचर्य स्वीकार करने वाले लोग ग्रहस्थ होते हैं । इसलिए समुचित रूप में उन नियमों का पालन न कर सकें, लेकिन आंशिक रूप में तो अवश्य पालन कर सकते हैं । उदाहरण के लिए सर्वविरति ब्रह्मचारी की तरह देशविरति ब्रह्मचारी उस मकान में
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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