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( २३५) 'स्वपतिसन्तोषव्रत स्वीकार एवं पालन करने से स्त्रियों को बे ही लाभ होते हैं, जो लाभ पुरुषों को स्वदारसन्तोषव्रत से होते हैं । संसारावस्था में स्त्रियों के लिए स्वपतिसन्तोष-व्रत के समान और कोई कार्य इस लोक तथा परलोक में हितसाधक नहीं है । दूसरे कार्य किसी एक ही लोक का हित साधने में समर्थ हो सकते हैं. लेकिन स्वपतिसन्तोष-व्रत से दोनों ही लोक सुधरते हैं । अन्य ग्रन्थकार भी कहते हैं
पति या नाभिचरति मनोवाग्देहसंयता । सा भर्तृलोकानाप्नोति सद्भिःसाध्वीति चोच्यते ॥
मनुस्मृति। 'जो स्त्री मन, वाणी तथा शरीर से व्यभिचार नहीं करती है, पर-पुरुष को नहीं चाहती है, वह इस लोक में सती साध्वी कही जाती है और मरने पर स्वर्ग और परम्परा से मोक्ष को प्राप्त होती है।'
११-व्यभिचार-निन्दा । स्वपतिसन्तोषव्रत स्वीकार करने वाली स्त्री के लिए इस लोक तथा परलोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है । पतिव्रता-स्त्री की सेवा-सहायता के लिए देवता भी तत्पर रहा करते हैं । शास्त्रों में सीता, द्रौपदी और सुभद्रा आदि सतियों का वर्णन उनके सतीत्व के कारण ही आया है एवं अग्नि का शीतल होना भी उनके पतिव्रत का ही प्रभाव है । इसके विपरीत जो स्त्रियां व्यभिचारिणी हैं, उनके लिए इस लोक