SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३४) एक-पतिव्रत का पालन करती हैं, उसी प्रकार पुरुषों को भी एक-पत्नी-व्रत का पालन करना उचित है और जिस प्रकार विधवा होने पर भी स्त्रियां दूसरे पुरुष के साथ विवाह नहीं करतीं, उसी प्रकार पुरुष को भी विधुर होने पर दूसरी स्त्री के साथ विवाह करना उचित नहीं । अतः विधवाओं की तरह विधुर को भी ब्रह्मचर्य पालना चाहिये। १०-स्वपतिसन्तोष । कोकिलानां स्वरों रूपं नारीरूपं पतिव्रतम् । . चाणक्य नीति । 'कोयल का रूप उसका स्वर है और स्त्री का रूप उसका पतिव्रत है ।' सर्वविरति ब्रह्मचर्यव्रत स्वीकार करने में असमर्थ ऐसी विवाह करने वाली स्त्रियों को विवाह करने के पश्चात् भी स्वपति-सन्तोष-व्रत स्वीकार एवं पालन करना चाहिए । स्वपतिसन्तोषव्रत स्वीकार करने वाली स्त्रियां देशविरति ब्रह्मचारिणी कहलाती हैं और व्यवहार तथा अन्य ग्रन्थकारों की दृष्टि में ऐसी स्त्रियां ब्रह्मचारिणी सतियां भी कहलाती हैं। जैसे - या नारी पतिभक्ता स्यात्सा सदा ब्रह्मचारिणी । सूक्ति । 'जो स्त्री पतिभक्ता है - दूसरे पुरुष से अनुराग नहीं रखती, वह सदा ब्रह्मचारिणी कहलाती है।' .
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy