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( २३२ ) के कार्य को यदि मनुष्य-हत्या के समान पाप कहा जावे तब भी कोई अत्युक्ति न होगी।
गर्भवती स्व-स्त्री के समान उस स्वस्त्री से भी मैथुन करना वर्ण्य है, जिसका बालक छोटा हो । छोटे बालक की मां के साथ ऋतुकाल में मैथुन करना भी वैद्यक और नीति के अनुसार हानिप्रद है । ऐसी स्त्री के साथ मैथुन करने से और उस स्त्री के गर्भवती हो जाने से उस छोटे बालक का विकास रुक जाता है और गर्भ का बालक भी कमजोर, रुग्ण एवं अल्पायुषी होता है । इसलिए छोटे बच्चे वाली स्व-स्त्री से भी मैथुन करना त्याज्य है ।
८-इस समय के स्वदार-सन्तोषी
वर्तमान समय के परदार-त्यागी और स्वदार-सन्तोषी पुरुषों में सम्भवतः ऐसे पुरुष तो गिनती के ही निकलेंगे जो स्व-स्त्री सेवन में नीतिकारों की बताई हुई मर्यादाओं का पालन करते हों । लोगों के मुह से एक-दो या चार-छ: दिनों के लिए मैथुन का त्याग कराने की बात सुनकर समाज की पतनावस्था पर दया आती है । उनके इस त्याग लेने की बात से यह स्पष्ट है कि ऐसा कोई ही दिन जाता होगा जिस दिन वे मैथुन से बचे रहते हों । यद्यपि नीतिकारों ने ऋतुकाल के सिवा अन्य समय में स्त्री-गमन का निषेध किया है और इस बात का समर्थन वैद्यक-ग्रन्थ भी करते हैं तथा प्राकृतिक रचना पर दृष्टिपात करने से भी यही प्रकट है, फिर भी लोग इस मर्यादा की अवहेलना करते हैं । ऐसे लोगों को मनुष्य कहने का कारण केवल उनकी शारीरिक रचना के सिवा और कुछ नहीं रहता क्योंकि जिन नियमों