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( २३१) प्रतिस्त्रीसम्प्रयोगाद् रक्षेदात्मानमात्मवान् । क्रीड़ायामपि मेधावी हितार्थी परिवर्जयेत् ॥१॥ शूल-कास-ज्वर-श्वासकार्य-पांड्वामयक्षयाः। अतिव्यवायाज्जायन्ते रोगाश्चाक्षेपकादयः ॥२॥
'अति स्त्री-प्रसङ्ग से अपने को बचाये रहना, सावधान रहना मनुष्य को उचित है। अपना भला चाहने वाले बुद्धिमान् पुरुषों के लिए क्रीड़ा में भी अति प्रसङ्ग वर्ण्य है । अति मैथुन से शूल, खांसी, ज्वर, श्वास, दुर्बलता, पीलिया, क्षय आदि व्याधियां उत्पन्न होती हैं ।'
- तात्पर्य यह है कि अपनी स्त्री से भी अति मैथुन वयं है । अति मैथुन के साथ ही नीतिकारों ने असमय के मैथुन का भी निषेध किया है । दिन का समय, रात का पहला और अन्तिम पहर तथा स्त्री गर्भवती हो वह समय मैथुन के लिए निषिद्ध है । दिन में तथा रात के पहिले और अन्तिम पहर में स्वस्त्री से किया गया मैथुन भी शरीर सम्बन्धी वे ही ह नियां करने वाला होता है, जो हानियां परस्त्री-गमन से होती हैं । इसी प्रकार गर्भवती स्त्री से मैथुन करने से गर्भ के बालक पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है । कभी-कभी तो माता-पिता की इस कुचेष्टा से गर्भ में हो बालक की मृत्यु हो जाती है । यदि बालक जन्मा भी तो वह बचपन .से ही अब्रह्मचर्य की कुचेष्टायें करने लगता है और अन्त में महाभयंकर परिणाम को प्राप्त होता है । गर्भवती स्त्री से मैथुन करने पर वह स्त्री भी रोग-ग्रस्त हो जाती है तथा प्रसूति रोगादि से मर भी जाती है। गर्भवती से मैथुन करने