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( २२६) रोगों की दवाइयां भी ऐसी जहरीली होती हैं कि यदि उन. दवाइयों से एक रोग का नाश मालुम होने लगता हैं, तो दूसरे रोग घर कर लेते हैं और पीढ़ी दरपीढ़ी चल निकलते हैं।
गांधीजी के कथन का अभिप्राय यह है कि पर-स्त्री सेवन से रोग और अशक्तता का ऐसा आधिक्य हो जाता है कि जिसका फल भावी सन्तति को भी भोगना पड़ता है । वे आगे कहते हैं कि 'मनुष्य के सामाजिक जीवन का केन्द्र, एक-पत्नीव्रत ही है।' इसलिए स्वदार सन्तोष व्रत स्वीकार करके पर-स्त्री का त्याग करना ही लाभप्रद है। अन्य ग्रन्थकार भी कहते हैं -
दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निन्दितः । दुःखभागी च सततं व्याधितोऽल्पायुरेव च ।। नहीदृशमनायुष्यं लोके किञ्जन दृष्यते । यादृशं पुरुषस्येह परदारोपसेवनम् ॥
__ मनुस्मृति । 'दुराचारी पुरुष लोक में निन्दित होता है । सदा दुःखी, रोगग्रस्त और अल्पायुषी होता है । इस संसार में पुरुष का आयुर्बल क्षीण करने वाला ऐसा कोई भी कार्य नहीं है, जैसा कि पराई स्त्री के साथ रमण करना है।' .
परदार-गमन से केवल आयुर्बल ही क्षीण नहीं होता किन्तु बल, साहस, धन-वैभव आदि भी नष्ट हो जाते हैं । कैसा भी बलवान हो, कैसा भी वैभवशाली हो और कैसा