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________________ ( २२३) रुकने योग्य बहुत गुंजायश रह जाती है। इसलिए विवाहित पुरुष-स्त्री को देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत स्वीकार करना एवं पालन करना चाहिये । पुरुष और स्त्री के भेद से देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत का नाम स्वदार-संतोष-व्रत और स्वपतिसन्तोष-व्रत है । इन दोनों की अलग-अलग व्याख्या की जाती है। २-स्वदार-संतोष जिस ब्रह्मचर्य-व्रत में स्वदार का आगार रक्खा जाता है, उसे स्वदारसंतोष-व्रत कहते हैं । इस व्रत को स्वीकार करने में उन सभी स्त्रियों से मैथुन करने का त्याग करना पड़ता है जो स्व की नहीं हैं । जो स्त्री स्व (खुद) की कहलाती है उसके सिवा अन्य सभी स्त्रियां परदार हैं और यह व्रत स्वीकार करने में ऐसी सभी स्त्रियों से मैथुन-सेवन का त्याग किया जाता है । इस प्रकार गृहस्थ. पुरुप जिस देशविरति ब्रह्मचर्य-व्रत को स्वीकार करते हैं, उसका नाम स्वदारसंतोष-व्रत है और इस व्रत को स्वीकार करने में परदार का विरमण (त्याग) किया जाता है । .३-लाभ। स्वदार संतोष-व्रत का बहुत माहात्म्य है । शास्त्रकारों का कथन है कि इस व्रत को स्वीकार करने वाले पुरुष की कामेच्छा सीमित हो जाती है, जिससे वह असीम कामेच्छा के पाप से बच जाता है । पर-स्त्री-सेवन का त्याग करने वाले पुरुष का चित्त, परस्त्री की ओर जाता ही नहीं,
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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